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चिहुंगति चरपई अद्यावधि उपलब्ध रचनाओं में अपने ही प्रकार की रचना है।निससाहित्य के माध्यम से कवि जन साधारण को संसार की नश्वरता का कर्म के का का, तथा अनेक योनियों में प्रमण करने तथा इक्ति आदि का ज्ञान कराया है। अत: काम में जैन दर्शन के सिद्धान्तों का भी सम्यक् प्रतिपादन हुआ है।काव्य की दृष्टि में चिहुर्गति उपई पक सरस रचना है जिसको पढ़ने में और मनने में मन लगा रहता है।कवि ने विविध आलंकारिक दृष्टान्तों मारार चना को परस बनाया है।
वालो ने प्रस्तुत काम में गर्भ मास से लेकर मृत्यु तक जीवन का सबीव चित्र खींचा है। नरक का ऐसा सजीव और रोमांचक चिन अन्यत्र उपलब्ध नहीं हो सगाापाप करने के बाद नरक में आने वाले जीव का काव्यात्मक तथा रोमांचकारी वर्णन देखिए:
जइ उपजाई कूमी पफारि, नाघड देह न माइ बारि परमाधापी किलकिलवरी, धाई, खंडो डि करहं तिषि का पारानी परि देह वली मिलइ पडि भूमि गाउ बलवला आरडा नारणी पाड ब, आव पक्सिया सिरि दिइ चूब अनेक परिछई ते विनडंत, वीणवथम जीव बिलवंत नरमा भनी मिडाति, वे मेल्हई करवत माति त्रिमित करालि मागद नीर, बाबर करी पाई धीर
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