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और सरल पावा में वर्णन दुष्टव्य है। कवि ने बुढापे का अत्यन्त रोमांचकारी
वर्णन प्रस्तुत किया है। वर्णन की स्वाभाविकता देखिए:
परधंधा पडिउ सह कोइ कुटुंब मैलावर वाइवा होइ
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चत्र अक्षत्र कीधा अविचार, काका करिसइ सार
जरा पणs fee पर व सावि, पहिला दात करs जिम पलाति सिणा माडी रही हंसि, डोकरू पागइ हिव लापसी
धवल मा देह जाजरी, वाकर वास कुल लालरी घर उ ते किही न जाइ, कुटैब सपला उवीळ थाइ वाडि कुची कीड कइ सोइ काकानी सुधीन करइ कोइ आक बहुद्धी मणि करउ माइ, मुह मुचकोडी पाछी नाइ रीसाविड ते मेल्डर फाल, सिर धूमइ मुनि पढइ लाल सूरणs पडिउ सूंड करइ, बजीस डोकर कही अमरइ चिगति माहि नत्थी सार दीसह बुक्स तमउ भंडार सुख सणी जड़ वाल करउ पंचमगति ऊपरि सांवरउ (५५-६१ ) कवि संसार को दुख का भंडार कहता है। संसार की वह कर्म भूमि मनुष्य को जैसे चाहते हैं वैसे नवाते है। इसको तो समकित का पालन करने वाले व्यक्ति ही पार १८ सकते है। अनैकाल रहट की घटियां और चक्र की मीति जीवको फिराता है
और अन्त में उसे अपना ग्रास बना लेता है
बिमति माह कोई नत्थी बार, दीस इक्स पर भंडार
चिगति व सीई नहीं कोई गं, जिहि निसि एक वह जिण धनु (२)
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estat ata निर्मल मलकति आठ पहर एंई कर्म बाथति
अरहटि घटिका जिम इ माल तिम जीव फिरड अमेत काल
चद राज कीधी रंगभूमि अनेक रुचि नचाकि करमि
नव नव सुहरा नव नववेस, भगइ वेस भइ बनारिव मावि देस
मर नहीं जीव छाड देह पाचचकित छ पह
जिम फिर चकार जिम जीव माहि फिर इस संसार (५-७)