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के पेट में साप का होना त विद्याधरों की राजकुमारी से विवाह कर विमान द्वारा चम्पापुरी आना सिंघल की राजकुमारी के झील के प्रभाव से जहाज का डूबने लगना आदि सभी घटनाएं अति प्राकृतिक अथवा काल्पनिक है। जिनदत्त का विमान में बैठकर आना हमारे भारतीय कला कौशल की सम्पन्नता का प्रतीक है।
क्या प्रवाह अव्याहत है रचना में इन अवान्तरघटनाओं का समाहार करके कवि ने स्थात्मकता, प्रवाह और रचना के पद लालित्य में पर्याप्त योग दिया है। कथा के आरोह अवरोह चरम और विविध घटनाओं द्वारा कथानक पूर्णता की ओर अग्रसर होता है।रचना की प्रबन्धात्मकता निर्मान्त है प्रारम्भ से लेकर अन्त तक कवि विविध वर्धनों से कथा को पुष्ट किया है, ताकि उसमें उत्साह अनवरत बना रह सके। पूरा काम चौपाई छन्द पैलिखा है परन्तु यत्र तत्र वस्तू नाराज, अध
नाराव आदि भी मिलते हैं। नाराच का एक उदाहरण देखिए:
पताहिहि ताला गरुलह भाला मुंह मई ते नीसरs
काल उदारण विहरू वास्यु तहि फौकर
fies कपास वीह सहासीह काल भत
कहि गड सो पहिर जसु होवइरित छूट जसु कह अंतु । (१२७)
हास्य और अद्भुत का एक समन्वित चित्र देखिe:
पाहाड लोग इस मो वर कंठि किसोर
कहा कुमरि बुडि ही दिन मत लेइ कोइ छीनि पालीबाट आरुमादह गले रयम की माल
अ डी कवि का ही मुह
माह (३००)
वन विवरणों के बाधार पर वह कहा जा सकता है कि रचना की प्रबन्धात्मकता याच प्रस्तुत काव्य काव्य की सीमाओं से ऊपर उठ जाता है त्या महा काव्य की सीमाओं को स्वई करता है इससे इसे पकार्य काव्य कहा जा सकता है। अन्त में कवि में सर्ववजात जनवरत को राजा बनाकर मोक्ष की ओर उम्र होता विद्याया है। अतः रचना का निर्वेद प्रधान है। इनवर्णनों के आधार पर रचना की कारिक शैलीमा तथा प्रबन्धात्मकता और चरित मूलक क्यात्मक