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माद विनोद उंद बहुकरउ ।पविरूप कला अणुसरउ छोड पाव मुब्धि दीसह पाइनट मउ मेला वावरण धरा तार हि हार वयण विधइ किरनि ममा पुगणन विपरित रोड एक वारिया राजा ही बावस भय
(३२४-३२५)
इसी प्रकार बराच वर्णन, व्यंग्य वर्णन, बा, वैश्या वर्णन आदि पर कवि मे थोड़ा प्रकाश डाला है।
कण विप्रलम के कुछ स्थल अत्यन्त मार्मिक है जिनमें जिनदत्त के प्रमुन्द्र में गिर जाने पर विमलमती का विलाप अत्यन्त प्रसिद्ध है। कवि ने रचना में चौपाई छन्दों के अतिरिक्त नाराच अईध नाराब छन्दों में विलाप वर्णन बड़े ही स्पृहणीय किए है। एक करून विप्रलंभ की स्थिति देखिए:
हसा गवणी चंदा वहणी करह पलाव मोही आगइ देखत पेसन क्स गयउ नाह आय पर पाही सरभू कहा कराया कठी रोहण वालि हुवास मा देश पराउ काल कीयउ सबीका पिम विव हि हाइ बाइ सह सीढि कति पयल कमोहि चौ विसि धामी रोबइ कहा कियो कतार
देति बती बाडिपति मासामी राक (५४-१५) ऋषि की माताजिनबल्ल सपई बनाकर की बनता का परिचय मिल
मावि ने विविध वनों मारा जाम का परिचय दिया रवनाकार र बड़ा हीबार मुवि पासा प्रतीत होता है। रचना विविध वर्णनों को देखते
महमा का बया करने सत्कालीन समाज का सही चित्रण प्रस्तुत किया
नाव आयन बही सरकवि ने प्रस्तुत कृति की रचना की दिने नामाविक बत्वों का सही त्यान करके माने या सून को पुष्ट किया है। विकी गणना स्था बकालीन आर्थिक, समाजिक और सास्कृतिक स्थितियों