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________________ ५०८ जिनदत्त का कपोत्सव और कढिगत शिक्षा वर्णन के उदाहरण देखिए:राज करत दिन कैसे गए। सठिणि गव्यु मास दुइ भए जीव देव परि मंदण मय पर घर कुटंब बधार गया गावहि मी नाइका सच पूछि मोतिकु देहि बोल aफोफल पाम । दीने बार पटोले दान पूत बधार नाही होरि । दीने बेठि दाम दुइ कोडि बाढउपूत कला जिमूबंद । जाइ विहार किया आनंद जिनवरु पूज मुषिह पर पड़ी। रिकि जिनदत्व नाउ तिम्रधरी are दिवस वाढइ जे तड । दिन दिन विरध कर ते सड उकार लथ मधु जाणिल ईदतक्क परिवाणि मुनि व्याकरण विरति का जायु मरहर भाव महापुरामु लिखतु पढत सीसित अराजति तु तु बार ही सक्छु अरु संडासीसी सब वहतिर कला क्या के को याद बना रखने के लिए कहीं कवि ने बचपन का (५६-६४) भी देवा या सकता है। मन से जोड़कर क्या प्रवाह को आगे बढ़ाया है: कर बाइक सवा कुल फिरइ । मिक्य उपरि भाउ न पर विवाच। मम देठि कुल यू डा विधि देखि (६५-६६) पूत विषम मनु बस्तु छेद में कवि ने समय देव के बदपुर नगर का अत्यन्त सुन्दर वर्णन किया है। के वर्णन बड़े सत्कारपूर्ण है। भावा की सरलता और बकार, कार और मकार के स्वानुजायथा का अलंकार के सुन्दर उदाहरण ष्टव्य है:
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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