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बुद्धिहीन है कवित्त रचना कैसे करे उससे विवध ज्ञानिकों का अनुरंजन कैसे होगा यह धर्म क्या कहते वह सज्जन और दुर्जन दोनों से क्षमा याचना करता है। वर्णन की। परम्पराओं से काव्यकार की क्षमता, काव्यात्मकता तथा रकमा की प्रबन्धात्मकता का पूरा पूरा परिचय मिलता है।वर्णन की आलंकारिकता रसात्मकता और सौन्दर्य देखिए:
हा असर जिदत्त पुराणाप डिउ न लवन द वका असर मत्त हीण जइ होइमहुजिप वो दे कवि कोर हीण इधि किम करत कविस्तार जिण मका बिनुह जप चित्त धम्म कथा पयतह दोसुदुजा सयण करहि जिदोसु भुवण कई म अतीते घणे ।बहुले अत्यहि गइ आयुषे कइ त कुरा विवहु म पेखि पा. पसारर भाचल देखि बइ अइरावइ मत्स गईदुजोयण ला सरीरह बिंदु तास गाज जइ धुवण समाप गइयर रइयर प्रापुणे भाष मोडस कला पुन ससि मा आहिसवा समिठ सीयलक सबकाहि वा किरण तिहुक्म जइ विपइआप पमा पि जोगणा पड़ हाथ जोडि जिनवर पण परवीयाराव सामिय भमि पर बल्ल होउ सबइत्व विणत र सपा (१-५)
भाव पवा की दृष्टि से यदि इस रचना का भूत्यांकन किया जाय तो वह स्पष्ट परिचित होगा कि यद्यपि जिनदत्त पापा में रसायक माधुर्व प्रधान स्थल मन पर फिर भी दिन स्थलों के वर्षन । कवि का मन रमा है उनमें अपेक्षाकृत पक वैविध्य और विमान रचनाकार में काव्य में जिन विविध वर्णनों का समावेश किया है, वर्ष इस प्रकार है:
बाल वर्णन (१) बीन्दर्य और मशिख वन