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कथा परम्परा और क्यादि यपि अत्यन्त अधिक पौलिकता तो नहीं है परन्तु फिर रचनाकार ने काव्य में कई काल्पनिक तथा अति नूतन घटनाओं का आयोजन किया है। तथा विविध घटनाओं को क्या सूत्र में पिरोकर तत्कालीन समाज का एकदम सही चित्र प्रस्तुत किया है।
प्रस्तुत काव्य का नायक जिनदत्त है भिसे हम प्रारम्भ में वीर प्रगत के ममें देखते है परन्तु आगे चलकर उसमें धीरोदत्त के गुणों का विकास भी दीख पड़ता है।रचना में नायक द्वारा प्रणीत विविध कार्य कलापों ने काव्य-शिल्प के मन में बड़ा योग दिया है।
काव्यकार रह पर वीणापाणि प्रसन्न है।अपने साधक को वह तुष्ट होकर वरदान देती हैरता उसे जिनदत्त चरित ला का बर मागता है औरसरस्वती का म चित्रण सा है:
जाहि संभव जिपवर मह कमल सित्त मग तापी जसु अमल आगम हद तच्चवर वापिसारद सद अत्य पय साणि गुणणि बहु विजागम सारठि मरास सहइ अविवार बमारियर कला पावडी र पवा भरती करिता का महा पाइरनी शसार माइ मह पसाउ स्वामिनि करि वाणिवत्ता पारिख का मोम सुगविवयन भारद जो कोमिस न कोई ली विमा का पारा मोमानि मामि मंडी बोकि अपर मुका करि मुठ मारमानि अन्न यि उपचार ब पसाइ भाव मा विना बलिक काल मा भारती पुगाइपि देविपकी वादे पायेवि
मुक कामासह सिरि र दिममइडत्यु (M-10 कवि रचना प्रारम्भ करते समय अपनी मा अथा मशान स्वीकार करता है। उसकी रचना बीमा पर प्र (मर मात्रा दोष) या दोष पूर्ण है। वह