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से मना कर दिया। फिर चातुर्य से जिनदत्त ने अपने असली रूप को प्रकट कर दिया । राजा बनने पर जिनदत्त बड़ी पारी सेना लेकर अपने नगर बसंतपुर को चला। वहां का राजा इससे युद्ध करने को तैयार हो गया। नगर के लोग घर छोड़ छोड़ कर भागने लगे अन्त में दोनों में मित्रता हो गई और दोनों मिलकर नगर का शासन करने लगे।
अनेक वर्षों तक राज्य सुख भोग, जिनदत्त ने अन्त में दीक्षा ग्रहण करली और कैवल्य पद को प्राप्त किया।
विप में रचना का कथा सार यही है। कथा के इन सूत्रों को जोड़ने में कवि ने अनेक स्थानों पर वर्णन कौशल और काव्यात्मक दाविश्य दिखाया है। रचना के कई वर्णन बड़े बेजोड़ है। कथा के तत्वों का क्रमिक विकास दिखाने में कवि ने अपनी प्रतिमा का पूरा परिचय घटना परिवर्तन द्वद्वारा प्रस्तुत करता है। शैली के लिए भी रचना उल्लेखनीय है पाव और कला दोनों पक्षों की दृष्टि से रचना पर्याप्त महत्व की है।
भाषा की दृष्टि से रचना का मूल्यांकन करने पर यह स्पष्ट होता है कि यह कथा काव्य जनमाया में लिखा गया है जो कथा काव्य के रूप में अपने कथा तत्व के सौष्टव तथा सौन्दर्य के कारण उस समय बनता में खूब प्रचलित रहा होगा। क्योंकि प्रसिद्ध जिनदत्य के चरित को अनुकरणीय क्षमतेचे वर्णन क्रम में एक धारावाहिकता है। क्यानमा चलता है। पूरा काव्य जिन के जीवन चरित की सुन्दर कन्या सिक रुप रेखा प्रस्तुत करती है।
प्रबन्ध काव्य की दृष्टिसे विचार करने के लिए दिन चउचर के साहित्यिक सौन्दर्य का मूल्यांकन आवश्यक है। रक्मा के विविध वर्तनों द्वारा ही काव्य की ऊंचाई अध्ययन किया जा सकता हैना में अनेक रस प्रधान स्थल है जिनका मन रमा है किवि ने काव्य का प्रारम्भ जिनवर नमन से किया है। कवि ने क्या का प्रारम्भ वत्क सरस ढंग से किया है। क्या सत्य के विकास मैं इससे आगे जाकर बड़ा मोनिका है। सरलता सरसता और नकली विविध घटनाओं हमारा पुष्ट हुआ कुकूल क्या के आरोप से लेकर चरण तक में योग देता है।