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ने प्रत्येक घर से एक दिन एक एक पुल भेजने का आदेश निकाल दिया।एक दिन जिनदत्त ने एक मालिन से फूल लेते समय उसे रोते तड़कते देखा ।पूछने पर उसने सारी घटना सुनाई। जिनदत स्वयं जाने को तैयार हुए राजा और राजकुमारी जिनदत्त के सौन्दर्य पर अराध थे पर अन्य कोई रास्ता भी नहीं था।जिनदत्त एक मुर्दै का काल और तलवार लेकर राजकुमारी के पास ही रिपगया। अध रात्रि में सर्प ने कंकाल को मनुष्य समझ कर उस पर अनेक फम भार इतने ही में मौका देख जिनदत ने उसके टुकड़े टुकड़े कर दिए। राजा ने राजमारी का विवाह उससे कर अटूट । धनराशि दी। दोनों पुनः वसंतपुर बले । सागरदत्त को धन देवकर पाप आ गया। उसनेराजकुमारी को भी हधियाना चाहा। माल में कीमती पत्थर बाधकर उसने समुद्र में डाल दिए और विस्त के सामने रत्न गिरजाने के व्याज से कृत्रिम डंग से रोने लगा। जिनदरत रत्न निकालने समुद्र में कूद पड़ा। सागरवस्त ने सलकर के डोरी काट दी। जहाज आगे बढ़ गया सागरदत्त ने जिनदत्त की पत्नी राजकुमारी का शील हरम करना चाहा जिनेन्द्र के स्मरण तथा राजकुमारी के शील के प्रभाव थे जहाज हबशा देख सक्ने रामकुमारी रे क्षमा याचना की। सिंहलकुमारी ने चम्पापुरी के जिन मंदिर में विमलपदी को देखा वो जिनदत विरह में व्यास धीवर जिनदत्त भी जिनेन्द्र के स्मरण में निारे लगा और विड्यारों में पना राजा शोक और रानी अशोक भी थे। राव रानियां पी थी जिनके नाम विभिन्म बड़े को प्रदेशों के अनुसार थे। यहां के राजा ने इस भविष्य वापी शुमार कि वह उनकी पुत्री का विवाह उसी अखि करेंगे जो सर्वप्रथम समुद्र पार कर मामेगा-निबार विवाह कर दिया वित्त ने बहा रहार विदयारों विमार पीसी और प्रसन्नता से अपनी पत्नी को लेकर विमान इवारा बम्पापुरी करे।
चम्पापुरी में उसने अपना शरीर विकृत बौने का बना लिया और उसने रापमा बाल स्वयं को जिनवा शोषित किया। किसी ने इस बात का विश्वास नहीं किया और उसकेर में उसकी दोनों पत्नियों ने भी उसे प्रहम करने