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लिखी हुई है जिसका एक और दीमकों ने काट कर विनष्ट कर डाला जिससे कहीं वहींपाठीशों में भी हानि पहुंची है।
जिनera चउपई के सविता कविरल्ड थे जो जैसवाल कुल में उत्पन्न हुए थे। कवि ने अपने वंश का परिचय विस्तार में दिया है। कवि रल्ड अपने माता पिता के परम भक्त थे। कवि ने माता पिता को बड़ी ही श्रद्धा से नमन किया है:माता पाइ नग जंबो दिन लियउ हि मत लोग
उवरि मास दस रहि घराइ । वम्बुधि हुइ सिरिया माइ
पुण पुणु पणवइ मातापाइले उ पाल्हि करुणा माइ
म वारण इस उरपुडा हा माइ मधु जिण सरण (२७-२८ ) farera चपs अप्रकावित है। रचना के कुछ अंश अभी हाल ही प्रकाशित
किए गए हैं।' जिनसे रचना की सम्पन्नता पर विचार किया जा सकता है प्रस्तुत रचना ० १३५४ में लिखी गई और इसकी प्रतिलिपि ० १७५२ में हुई रचनाकाल के विषय में स्वयं लेखक द्वारा संकेत मिल जाता है1
संवत् तेरह से चरवपूर्ण मादव सुदि पंचम गुरु दिपुणे
स्वाति नवचंडी हती। मइ रल्हू पणव सुरसुती (२९)
चिनव
पूरी रक्ता ४४ दों में लिही गई है ऐसा कवि का प्रमाण है:
farera पूरी भई पड़ी। छप्पन हीमनियम कहीं परन्तु छन्दों का
ठीक नहीं मिलते से संस्था कुछ बढ़ जाती है। अद्यावधि पाटन बीकानेर, बैसलमेर नागौर, अजमेर आदि के भंडारों की सम्यक शोध नहीं हो सकी है अन्यथा जिनदत्व चडपड की दूसरी प्रति या प्रतिलिपि प्राप्त होने की संभावना थी । वस्तुतः एक डी प्रतिलिपि बाधार पर भी अनुमान पर ही बाधारित रहना पड़ता है।
१. देवि हिन्दुस्तानी भाग १९ बैंक ४ पृ० २०-२१ हिन्दी साहित्य के की प्राचीन क्या कृति- जिनदत्त पर्व- श्री कस्तूरचंद का
या
काल का