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कवि रह ही प्रस्तुत कृति के रचयिता थे यह तय निन्त है क्योंकि रचना में अनेक स्थानों पर रल्ह नाम मिल जाता है।रल्ड ने इस काव्य के अनेक नाम दिए है कहीं कथा, कहीं वउपर, कहीं चरिनु -यथा
(१) जिनदत्त पूरी नई चउपडी
(५५३)
(२) कवइ रडु जिनदत्तु वरि
- ( २६)
(३) जो यह कथा पविड रालि
(५५१)
(४) यह जिनदत्त चरित निय क ि (५५२)
*
१- पुचिका इस प्रकार है:
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परन्तु पूरी रचना एक स्थात्मक प्रबन्ध होने से था पूरा ग्रन्थ प्रमुखतः चउपड़ छन्द में लिखा होने से इसका नामकरण "जिनदत्त कापड ही उपयुक्त जान पड़ता है। कथा के सूत्र इस रचना में बड़े प्रौढ़ है। यों पूरा काव्य जिनदत्त का चरित मूलक आख्यान ही है। पूरी रचना में विभक्त नहीं है।परन्तु कहीं कहीं वर्ग सूचक सूचना
मिल जाती है। कवि ने प्रस्तुत रचना लिखने के पूर्व पर्याप्त अध्ययन किया है प्रतीक्ष होता है T जैन समाज में जिनवत्व एक बहुत ही प्रसिद्ध व्यक्ति रहा होगा, ऐसा दत्त पर अप में रखे गए पं० लागू के जिनदत्त चरित से स्वष्ट होता है जिसका रचना काल सं० १२७५ है। कवि र के लिए प्रस्तुत चरित रक्षा के लावू डी
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चरित ग्रन्थ प्रेरणा के में रहा, ऐसा उसने स्वयं स्पष्ट कर दिया:काबू विराम पा
म यो विपत् पुरा देखि विक र पड़ हत्या
ह
की जय के उपलक्ष में की
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की लिपि दिल्ली के किसी
ऐसा ग्रन्थ के में पुष्पिका से स्पष्ट होता है।'
१७५१ वर्षे कार्तिगदी वासरे लिखित महानंद पालम निवासी पुस्करणाम
बार्क इष्टर डालिटि गया
व मम दोषो न दीयते । ॥१॥
मायाको: श्री रस्तु पंचमी व्रतोपना निर्मितं । । ।। (प्रति-निदत्व चरपर)
जैन शोधसंस्थान जयपुर) ।