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अतः कवि के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी प्राप्त नहीं होने से कुछ भी निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता। रचना में कवि ने शुभ कामनाएं करते हुए चित्व की निश्चलता से इस मैगलकलश चरित जैसी सुललित वाणी सुनने को कहा है:
निश्चल चित्त पसाउला विधन विलीजइ बुरि
सुललित वाणी इव भवइ श्री सर्वानन्द सूरि । (३)
रचना का विषय मंगलसूचक भावनाओं का उद्बोधन होगा तथा किसी मंगल सूचक पुरुष के जीवन चरित को लेकर ही कवि ने जन समाज के लिए यह काव्य रचना की होगी पैसा परिलवित होता है। रचना के प्रारम्भ ही कवि अनेक देवताओं की बंदना करता है। स्वयं कवि इस रचना को चरित तथा रलिय रसाल काव्य कहता है। इस रचना की माया में अपभ्रंश की उकार बहुला प्रवृत्ति कहीं दिखाई नहीं देती। अनेक समय का भी प्रयोग दृष्टव्य है। एक उद्धरण देखिए:
( वस्त)
सयल मंगल सबल मंगल मूल मुणिनाव
आगिरि आदिजिन पायपरम पणमेव भाविन
कछौली व पावना उरवार परे विणु
वामुवानी सुप करणा के अनतरी बवर माल परित गरिन रात
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इस प्रकार रचना पूरी प्राप्त नहीं होने से इस सम्बन्ध में अधिक प्रकाश नहीं डाला या सकता। परन्तु उक्त उद्धरणों से यह कहा जा सकता है कि यह अवश्य ही एक are चरित काव्य होगा।
21 विना कपड े ::
निन्द्र नेमिनाथ चतुम्पदिका के पश्चात् एक पर्याप्त महत्वपूर्ण प्रबंध रचना चिवई उपलध हुई है। यह रचना जयपुर के दिगम्बर जैन मन्दिर पाटोदी के भंडार से मिली। रचना ८६० इन्च के आकार के गुटके में