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में कथा का पूरा विकास हुआ है। अन्त में कवि रचना निर्माण का लाय बतलाता
है.
पढहि पुणहिजे जिणहरि देह है 'निच्छा सारतरवि
मुपहा सती चरितु संपला मसिद्ध पुम्सु लीला ते लही ) वस्तुतः सुभद्रा सती बम्पदिका काव्य भाषा तथा व्या तीनों मों में मात्वपूर्ण सिद्ध होती है।