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________________ मातका चउपाइ वीं अताब्दी की रचनाओं में मातुका बउपई रचना भी उपई संजक रचनाओं की परंपरा में है परन्तु इस बना का विषय इसरा होने से इसपर कक्क मातृका संशक रचनामों के अन्तर्गत विचार किया जा चुका है।मना की कुछ पंक्तिया इस प्रकार है. रचना प्रगति है।' जा ससि सुरु भूया ज्याप्पंति या प्रा नक्षत्र ताराति वा वरना बह व्यापा नासिबलकि करर मंगलाचार' सम्यकत्वमाइपई भातुका चउपर की ही माति का कड़ी की एक रचना सभ्यकत्वमाइ चापा मिलती है। रचयिता जगल कवि १४वीं जवाबी के है। रचनाकार जगड्ड ने इसमें सम्यक्त्व पर लिया है। बना कापई कन्द में है या साम्प्रदायिक दृष्टि को तिकी गई है।सम्यक्त्व की खामो या उसके क्या क्या है इन सबो का जथे लेकर मारना स्पष्ट कला है। इसरवना पर भी कमक पातका परंपरा के अन्तर्गत विचार मिाा पुग क वि स्वयं अपना परिचय देवा की दृष्टि से शरमा अकि परकार परिलक्षित नहीं होता। यापिति का किया - जागतिक राम पवार -एकका प्रबन्ध्या --प्रमुख काश्य परम्पराई १. प्राचीन.का. -सी ही.कारू.. -बही। ४- बही .., या केक का प्रस्तुत अध्याय-.
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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