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रूपों में प्रकृति का सफल वर्णन है। प्रकृति के किस प्रकार सरल सरल चित्र चिते बले जाते है यह दर्शनीय है।
काव्य समाप्ति पर कवि ने शान्त रम्र की सृष्टि की है यद्यपि पृष्ठभूमि के रूप में निर्वेद का आद्योपान्त कथन होता है पर अंतिम में ही शान्त स्पष्ट रूप में परिलक्षित होता है। कवि को शान्त और निर्वेद में सारा विप्रलंभ बदलना भी था और बारहमासा काव्यों की परम्परा के अनुसार समाप्ति पर नायक और नायिका को मिलाना भी था और अपने लक्ष्य धर्मोपदेश की पूर्ति भी करनी थी अतः इन्हीं उद्देश्यों से उसने राम की सफल व्यंजना की है। राजुल का सारा सौन्दर्य वहां और भी सार्थक हो जाता है जहां उसके बिरह चरम परिणति नैमि के चरणों में जाकर दीक्षा लेने में होती है और इस वर्णन को कवि ने अधिक मा नाम देकर पूरा किया है।
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इस प्रकार राजुल का अंर्मिलन कवि मे निर्वेद से कराया है। उग्रसेन की पुत्री ने प्रियमिलन को उत्कंठित हो पिता से अनुक्षा मांगी और ५०० सरियों सहित राजुल ने गिरनार जाकर दीवा दी और इस प्रकार स्वामिनी राजुल देवी निर्मल ज्ञान प्राप्त कर सिव हो गई। यही नेमिनाथ जैन समाज के पूजनीय २२ तीर्थकर हुए। ast तक निर्धारण का अपन है ग्रन्थ के नाम से ही स्पष्ट है कि वह
१- नेमिनाथ पक्का - डा० मायामी ० ४ पद ३८-३९१ ॐ वही पृ० १०४॥