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साच सहि बरि गिरि भिवंति क्विइ न मिज्जइ सामल कंति १ पण वरिसंत सर फुटंति सायक (१) प्रणु पणु ओड्डू लिंति
(te सी पहाड़ पीछे तो भले ही भीजें पर श्यामल कीति कन्त कभी नहीं पसीज सकते। उनका निश्चय अटल है। मेघ बरसने पर ताल तो फूट जाते है पर समुद्र बादलों की बोटे लेते है)।
इस प्रकार करुण रस का आत्यंतिक विरह नहीं होने से यह रस गौणरूप में ही निष्पन्न हुआ है। इस बारहमासा का नियामक विप्रलंभ श्रृंगार है सारी संवेदना afe नायिका के मुंह से स्पष्ट करता है। नायक निकट हो तो संयोग सुखद, पर वह तो दूर है बहुत ही दूर और इसी विरह संवेदन को कवि पूर्त रूप में संवारना चाहता है। उसमें राजुल के अयों का रंग भरना चाहता 1
प्रकृति वर्णन नेमिनाथ चतुष्पदिका में बड़ा ही सुन्दर हुआ है। प्रत्येक द मैं प्रकृति के वर्णन को कवि नै अर्थ के अलंकरण या अर्थान्तरन्यास द्वारा संपुष्ट किया है स्वाभावोक्तियां स्थान स्थान पर सुषमा लिए है। श्रावण में विद्युत का मक्क्क्ना मैचों का गर्जन, राक्षसी की भीति विद्युत का काटना, भादव में सरोवरों का लहराना आसोज में ओं का प्रवाह, चंद्र और चंदन की हिमानी गोव का दहकती भाग हो जाना, कार्तिक और मार्ग में कृतिकाओं का उतना और बालाओं की प्रियतम की प्रतीवा, पैक और माह में काम का उद्वेग और डेमन्स की तीव्रता और आक्रमण कागुण और चैत्र में के पत्तों से आंसू करना और रितुराज के आगमन पर कोयल की कूक (जिसकी नायिका ने यदि मि को टडका करs - कहा है वैसा में बमराज का फूलना, मलयानिल का चलना और ज्येष्ठ में सूर्य के प्रबंध का आय और नदियों का टूट जाना और पुनः आाबाद की गाज बीज, (गर्जन और विद्युत का चमकना) समी का सुन्दर वर्णन है। पृष्ठ-भूमि से लेकर आलंबन
१० नेमिनाथ बहुपदिका डा० पायानी
२०४३८-३९॥