________________
४८१
रिस रकुमरिया संसre
परवि भनेर कुई पत्ता
(हे मुगृधे । तू व्यर्थ ही नैमि नेमि करके अपनी सुध होती है। यौवन बीता जा रहा है संसार पुरुष रत्नों से भरा पड़ा है और कोई बर कर ले)
राजुल कितना सुन्दर उत्तर देती हैं:
१
(हे सही बहुत भोली है, को प्राप्त कर क्यों संवेदित
गंवार भी है लेकेि होते हुए किसी अन्य होऊंगी। क्या कोई मजवर प्राप्त कर मधे की
सवारी कर सकता है ?)
मोली का सबिरी मारि गरि अर्थत नेमि कुमारि
अन्नु पुरिस कुम अम्य नढ? गववरु हिउ कु रासभि चढइ??
अतः स्पष्ट है कि विप्रलंभ का सकल निर्वीक है। श्रृंगार के वियोग पक्ष को कवि ने सफलता से संभाला है। कहीं कहीं स्थल बड़े ही करुणाजनक हो जाते है। राजुल के आंसू सबका हृदय हिला देते है:
भादवि मरिया सर पिसकरून रोज रावल देवि
arjeet गइ निरधार किम उदेतिति करुणावार
(भावव में तात लहराने को राजू कापूर्ण हो न करने मी हाय
बुक अकेली को बहीन छोड़, हे कमाडावर), इमने क्यों उपेक्षा की
- मग सही राजक) भन रोड भीक नेमि न अप होइ
सिंचित उपर पर उपनिरिव न क (१) राति डी कहती है- है राहुल रो मानिष्ठुर नेवि अपना नहीं हो सकता
का विच करोगी हो सुन्दर यिनिक, परन्तु पर्वत तो उसे कहे की पड़ेगे)राजुल का विश्वास उत्तर सी को कितना संतुष्ट कर देता है
१- मे विनाथ पदिका श्री मागावी० छंद १८३
२० बी ०३१९