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कोमल सी सोई सोई थी नाकों में एक बार भी फाग तक नहीं। पशुओं का करुण वन नेमिनाथ को निर्वच निष्पन्न कराने में पर्याप्त था। साधक संजाल होड़कर भाग बला-अंगार होड़ गया, और निबंद है पवा और राजुल रोती रही रोती रही, बीवन और सौन्दर्य में बार के मोती पिरोती रही।
वास्तव में राज का विश्लम ध विप्रलंभ है जिसमें एक अनूठी पात्विकता है उसके बावों में मावा की पुकान परित्र की बान और सौन्दर्य की गरिमा है। अधु और सदन, बस और अन्दन,यही विरासत में उसे मिले है।गरीर में कहीं अंगताप नहीं। बिहारी की नायिकाओं की भाति र चलना और गुलाब की वीडियों के जाने की मात्र भी शुक्ति नहीं, मुरदास की गोपियों की माहि- मधुबन तुम कर रखा हरे वह नहीं मानी। पदमाकर की विरह बालाओं की पारियो यह सूचो सो संदडो कहि दीजो गाय, बबके हमार बहीन बन है किसक गुलाब कचनार मी जनारन की डारन पे डोलत अंगारन के पुंज है. पी राजुल नहीं कहती, उसके विरा में तो भारतीय नारी के आदर्श की पावनता है,उत्कृष्टता है, सारी आग व उन्माद मन की पीड़ा में ही डूब गए है। उद्वेगों का सागर और आओं के स्त्रोता उसके विस तो प्रेम दीवानी और दरब दीवानी मीरा की वह राम नाई पड़ी।
अंग व्याकुल भई मिय पिय मानियोअंबरखेवन विरह की वापीरन बाडी हो
और कभी बिना मित, मिलन की कोई बाधा नहीं बारहमा गार के दिन का उत्कृष्ट वर्णन
साल की यह बेदना विश्व मारियों का वर्ष कम की।
रास्वामी यानी वा माया नैगि नेमि करती है तो सखी उसे पूड कर डोटी
मिल करती प्रक्षित अब्बल माइन वापिसी हरित