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विक्लता में संसोक है। बड़ी विचित्र स्थिति है उसकी पर ४.दों की इस रचना में जीवन का एक स्वस्थ दृष्टिकोण परिलक्षित होता है। यद्यपि सही राहुल को अन्यत्र विवाह का लोभ कारवार देती है, यौवन का उत्स राजुल में जन अव धारागों में राशि राशि उद्वेग के साथ प्रवाहित होता है पर नारी ने जिस एक पुन को एक बार मन में बरण कर लिया पुनः वह अन्य किसी की ओर आर उठाकर भी नहीं देखती। अपने संकल्प शिथिलता लाना भारतीय नारी आदों के विरुद्ध था।
बारमासा बहुधा वर्ष के किसी भी महीने से प्रारम्भ हो जाता है। यों सामान्यत: पति के वियोग के पश्चात् ही इसका प्रारम्भ प्रत्येक महिने के आधार पर किया जाता है।संदेश-रासक का पड़रितु वर्णन प्रीष्म प्रारंभ होता है और बीसलदेव राम का बारहमासा कार्तिक के प्रारम्य होता है क्योंकि नायक पावर में प्रवास नहीं ही करते। पर हमारी आलोच्य रखना के नायक ने तो न भर्दी देवी न पावस। उसे तो शश्वत प्रवास करना था। नेमिनाथ के इस अप्रत्याशित प्रवास ने अभिन्न-यौवना राजल की पलकों में साक्न ही घोल दिया और यह बारहमासा श्रावण से ही प्रारम्भ होता - रिममि रिमझिम मेंह का बरना, मेनों की बडबडाहट और विगली का नयना कोमल नारी के कुमार बब को या देशा -विली राक्षसी है, काट बागी उसे:
अवधि घरवाणि सर्व देव मन्या विरहरि मिड दे! विजु भयका रस्सासि वेब, नैमिति दिल मी बडियम मे।'
और इसी प्रकार वा खारगेर बह विरह वर्णन ः पुनः मादी देशा
पिलाय सम्पनि
राती धमाला- श्री डा० भावानी
॥