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________________ नेमिनाथ चतुष्पादि का पूरा काव्य उत्तर प्रत्युत्तर शैली में चलता है। अतः कवि की यह नाटकीय सेवा योजना अत्यन्त सफल हुई है।राजुल का संवेदित होकर पूरना और सखी का उसे तत्काल सान्त्वना देकर प्रत्युत्तर देना किसी मधुर नाटकीय अभिय भंगिमा का परिचय देता है। दोनों अभिनेत्रियों का यह पारस्परिक संवाद और उसमें डूबा हुआ राजुल का मन किसी भी सहृदय नारी की मुख्य प्रवदना बन पाती है और उसके शोक, उसकी वेदना और आसनों का साधारणीकरण भव्य दर्शक वा श्रोत को स्वाभाविक रूप में ही हो मता है:- उत्तर प्रत्युत्तर का यह म किसी भी में देखा जा सकता है: कात्तिा क्षित्ति काइ संभ रजमति किमि हुई अति * रावि दिवसु आइ विलन्त, वलि वलि व्यकरि वयकरि at (कार्तिक में क्षितिज पर उगती दुई साफ (अभाव कतिकाएं) और राजमती का जीग होकर अत्यन्त माल हो जाना व दिन रात विलाप करना- हे प्रियतम, फिर मामो फिर माओ दया करो, क्या करो। तिक में क्षितिज परसामा का गना, बिजली का राक्षसी बन कर काट मा, तथा वृक्षों का ते हुए पल्हों के रूप में आसू बरखाना, आधुनिक काल वावदी प्रयोगों की याद दिलाता है। नै भिसणी अधिकिन मास, काक गूगल सो घरबास इमा इसी सनेक नारि गयो बि गिर नारि (सिसीनेमि की भाशा बोको बा तो कागर पामो हस्थाश्रम को छोड़कर काम कर गया। नहीं तो कोई इस प्रकार की स्नेहिल नारी को होड़कर मिरनार वा सका है। असम्भब) १- मैपिनाथ म्यविका-काई माती प्रथमाका-का-मायामी ।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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