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कवि श्री विनयचंद सूरि की इस रचना की नायिका राजुल ने अपने हृदय के राम को गा गा कर रोया है और रो रो कर गाया है। रचना को आद्योपान्त देखने पर ही इसकी मधुरता के आनन्द का अनुभव किया जा सकता है। इस ग्रन्थ का प्रकाशन भी श्री दलाल ने आज से तीन युग पूर्व ही कर दिया था। अभी एक और विश्लेषण ST० हरिबल्लम पायामी ने प्रकाशित किया है। इसमें उन्होंने इसका नाम भी नेमिनाथ चतुष्प दिका दिया है। कपड़ और चतुष्पदिका क्योंकि एक ही छेद के पर्याय है अतः इससे रचना के नाम में कोई अन्तर नहीं पड़ता है। डा० मायामी ने इसे प्राचीन गुजराती की प्रति माना है, पर प्राचीन गुजराती और प्राचीन राजस्थानी तो दोनों एक ही भाषा थी। गुजराती स्वतंत्र नाम की भाषा का जन्य तो बाद का है जिस पर हमने ऊपर प्रकाश डाला है। डा० मायाणी ने इसके पाठ का आधार प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह का पाठ ही रक्खा है।
आपणा कवियों तथा जैन गुर्जर कवियों' नामक गुजराती ग्रन्थों में भी इस कृति पर संक्षिप्त टिप्पणियों का उल्लेख मिलता है पर विस्तृत पाठ इन्हीं उक्त दो स्त्रोतों से हमें उपलब्ध है।
प्रस्तुत आलोच्य ग्रन्थ के रचनाकाल में भी थोड़ा अन्तर मिलता है स्थानों पर इसका रचनाकाल सं० १३५३ मिलता है, कहीं ० १३५८ मिलता है।" श्रीकाल भी इसका रचनाकाल २० १३५८ ही मानते हैं। श्री मुनिजनविजय जी का विचार है कि यह रचना ० १३३८ की है। श्री स्वामी नरोत्तमदास जी इसे
१- कार्ड गुजराती सभा धावली- ६९ डेरमा बौदमा इतना प्राचीन गुजराती काव्यो- द्वारा श्री डाक मायाणी ।
१- आपना कवियो- श्री ठान्द भगवान थी।
३- जैमर्जर कवियो- श्री मोहनलाल वलीचंद देसाई पृ० ५ भाग १।
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निताम्बर कान्स हेरलड- पुस्तक ९ ० २८२॥
५- देखिए श्री बला का पाटन के दारों के साहित्य पर व पाचवी गुजराती साहित्य परिनिर्वाण संग्रह)
६- जैन गुर्जर कवि- श्री देवई।
७- देखिये डा० नावानी कृत कार्ड ००० ६१ पू० १३।