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चपई काव्य
-:: नेमिनाथ बरड ::
हिन्दी साहित्य के आदिकाल की एक महत्वपूर्ण रचना श्री विनयचंयपूर कृत नेमिनाथ चतुष्पदिका है। यह रचना १४वीं शताब्दी की है और आदिकालीन हिन्दी जैन साहित्य में एक धारा विशेष की द्वयोतक है। प्रस्तुत रचना की भाषा प्राचीन राजस्थानी या पुरानी हिन्दी है।
नेमिनाथ चपs या नेमिनाथ चतुष्पदिका का वृत्त धार्मिक है। इस रचना के पूर्व भी नेमिनाथ पर एक और रचना उपलध होती है जो तेरहवीं शताब्दी की एक अप्रसिद्ध राजस्थानी रास रचना है। जिसका नाम नेमिनाथ रास है और रचनाकार श्री सुमतिमनि है। इस रास रचना का प्रकाशित रूप हिन्दी संसार के समक्ष आ चुका है।' इसी प्रकार की कई महत्वपूर्ण रचनाओं का संग्रह हमारे सामने मुनि जिन विजय कृत जैन ऐतिहासिक गुर्जर काव्य संचय, अपभ्रंश काव्यजयी' तथा प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह आदि ग्रन्थ प्रस्तुत करते हैं। इन कृतियों के आलोचनात्मक अध्ययन पर यह सरलता से कहा जा सकता है कि भाषा, पाव, रस, छन्द, अलंकार काव्य if aथा पqथतियों में हिन्दी साहित्य इन राजस्थानी जादिकालीन हिन्दी खना का रिनी है। कालीन प्रत्येक कृति अपने ही प्रकार से साहित्य का विश्लेषण करती है। जिनमें साकिर है एक अपूर्व नमस्कार है मात्र धर्म या उपदेश ही नहीं। नेमिनाथ पर भी एक ऐसी ही अनूठी रचना है जिसमें श्रृंगार, कम और शान्त एक र व्याय है।
१. हिन्दी सुन-देन तादी का एक अप्रसिद्ध राम-श्री मंवरलाल नास्टा वर्ष १०
२- देखिए जैन एतिहासिक र काव्य संग्रह-श्री मुनि जिन विजय प्रकाशन श्री जैन जात्यानंद
समा।
३- अपर काव्यानी द्वारा ला०म० याची सम्पादित