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१३२५ की पानते है। जो भी हो इसकना हो निश्चित है कि यह कृति वीं शताब्दी पूर्वाद्ध की है अत: इसका काल ०१५ सं० १५८ के बीच ही कहीं हो सकता है। इसी कवि का एक दूसरा काव्य उपदेश माला कथानक समय मिलता है। श्री देसाई श्री विनयवेद मुरि को प्राचार्य मानते हैं और वे अपने ही ढंग से इसका काल निर्षय-जैन गुर्जर कलियों में करते है।
इस काव्य की क्या बस्न विष में इस प्रकार है*गाल वर्ष परम सुन्दर श्री नेमिनाथ का स्मरण कर राजुकारामती) किस प्रकार सिद्धि को प्राप्त हुई - यह एक ही वाक्यकाव्य की मुख्य संवेदना है। इस काव्य में नेमिनाथ के माता पिता और राजन के माता पिता का वर्णन नहीं मिलता सिर्फ एक स्थान पर सेन नाम मिलता है पूरी चम्पदिक संवादात्मक रूप में ही है। पर नैमिनाथ का वृत्त अत्यन्त प्रसिदध सारीपुर के महाराणा द्रवियर और उनकी रानी शिवा दैवी उनके ने मिकुमार। उनसेन की कन्या राजमही दोनों का पाणिग्रहण ठहराया गया। विवाह के लिए धूम धाम से बात की। राजमती ने भी ऐसे परामवाली, बीर और सुन्दर पति को देखकर अपना बहोमाग्य माना। इधर जब निमार रथ पर चढ़कर पा रहे थे वो बाड़े में बंधे हुए अनेक पलों को देखा। निरीह पाल और माय कर रो पूरने पर यों ही बनेपा चला कि वारातियों को भी गिर ने ाि विवाह ही रख कोटा लिया। दो भाग दोन बीमा करन्य प्राया। इथर रानडी को भारी बोकगा। उसने भी मिश्विन महिमा किनेमिनाथ
परीही जीवन विना है। अन्य नवयौवना वि मिशधा का मई गार नीरजा मिला और नमी देखो भावय उपस्थित हो गया। अपने सिसोदिय बनाउनेकी कठिनाई काटा। फूल फूल हो गए।
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