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चालीय जान जादव बरकरी मेरी देव बजावई रे
सिरिवरि छत्र चमर सोहावई आवई देवि बाबई रे और अन्त में कवि का गत रस वर्णन और राजुल का न दोनों ही बड़े पार्मिक है। पशुओं का वध होगा या बानकर नेमिनाथ प्रत्यावर्तन कर मप। राजुल का करुण 'विलाप अत्यन्त उत्कृष्ट बन पड़ा है.
जाणीव जीव बध जिनवरि पदपरि धरिउ बाराग धिग पडउ एह सारनई सार नहीं निहा राग
निज वर वलीउ ी गाणीव राणीय राजल देवि विरह करालीय बालीम दलीय घरणि वीपई वि शीतल पनि दानि करी करीय सभेत सा नारि दीन बचन अ जि बोलाए बोल एकति अवधारि नाइ सनेह दामिन दाखिन रामिन देव तुम बिन मा राजन रान पावई हेव
रासी नैमि विवि बनी रोगामिनी कोडा कम बारबार मरी पूरइनवी नारी बीबई विकरी माइलिभरी रोकिदहीमावरी बाई पिक बारखी बोइप राजीनादि
वित विमति रामवि विलबादि निपति कीय बारे बस वापि बिनबर बानि बरसाद बरसह ईनमन हरे बान कई बीमा प्रशिकीधी बीपी मापीरे नब म निक्षीय राजीमती राति मनि नापी रे