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इस प्रकार कवि ने सरस शैली में पूT काव्य लिखा है। छंदों का सर्वपूर्व परिचित है। माका के लिए भी यह स्पष्ट है कि कवि ने पुरानी राजस्थानी व गुजराती के ठेठ शब्द कहीं कहीं प्रयुक्त किए है। शेष सब शब्द तत्सम प्रधान है। कला और भाव दोनों दृष्टियों से धनदेवगण के इस फाग का विशेष महत्व है।
इस प्रकार १५वीं सताब्दी के फागु काव्यों के पाका भाव और अभिव्यक्ति में एक अपेक्षाकृत स्थिरता है। हिन्दी साहित्य के आदिकाल में रसमय उर्मि काव्यों में फागु काव्यों का बड़ा महत्व है।