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नारी निरास फाग: उ888888ठसकन्छ
(रांडन मणि) #. १५.०का उत्तराय
रत्नमंडन गपि की एक और प्रसिद्ध कृति उपलब्ध होती है। कृति की प्रति बड़ोदा के जैन भान मंदिर के गुजराती विभाग में पुरवित है।' यो यह रचना जैन सत्यप्रकार में एक बार प्रकाशित भी हो गई है। रचनाकार का नाम स्पष्ट नहीं मिलता पर पुरया, मंडन और रैवतरत्न मन्डनमभूद इन शब्दों के फाय कवी ने अपना नाम स्पष्ट किया है। रत्नमन्डन आवार्य सोमसुंदर के (तपागच्छ ) के शिष्य थे। कति का रचनाकाल भी बहुत स्पष्ट नहीं है परन्त ५वीं वादी के उत्तरार्दध में ही यह रचना तिक्षी गई होगी ऐसा अनुमान
दिया जा सकता है।
रंगसागर नेमि फाय की पाति आवरयमक प्रास वाले छदों में यह काव्य लिखा गया है। इस रचना में दूहा छंद अधिक प्रयुक्त हुआ है और बीच बीच में कवि ने संस्कृत श्लोकों का वर्णन भी किया है। कवि ने संस्कृत में भी अनेक रचना की है।
नारी मिराब की विषय वस्तु देखो यस कृति सबसे भिन्न दिशाई पड़ती है। कवि ने विषय विज्ञान की इष्टि मेस कृषि उत्कृष्ट है। 'विच तरा ब-विलास व दर , मन्यात्मक है, ठीक रवी प्रकार भारी मिराज काय मी काव्यात्मक सना है। विकास में ही मालिक की इन्द्रधनुषी अपना का वर्णन करवा और में नारी राजमी की नवापारय मिरामा का। मारी को परिवान करले बानिए कवि ने रामग्री के बड़े स्वाभाविक विवारी सायराब कारण ही कृषि का नामकरण नारीनिराज शिवा। नागडेरा पू० नानपावर बहीबाराही विवान वै. की प्रवि। -त्यागामाल बादशाह क-करवरी मार्च, १९४७ -शाबीनमाज हा डा. बापरा.
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