SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 485
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४५० सभी का वर्णन कवि ने बड़े ही कौशल के साथ किया है। दों के क्षेत्र में इस रचना का विशेष महत्व है। कृति निर्वेदांत है थ श्रृंगार और वसंत के रसमय वर्णन परिष्तावित है। जहां तक फागु काव्य के तत्वों प्रश्न है कवि ने रुप श्रृंगार, नशिव, केलि क्रीड़ा और वसंत का सफल वर्णन किया है। रचना का प्रारंभ मंगलाचरण से ही हुआ है। कविशिवादेवी के स्वपुन रूप और नदशित का वर्णन करता है: अपन as sisteाटई बाटई परडीय देवि गौरीपीन पयोन्डरी ओरहरी माहि सर्ववि पहिल पेराई ए, गयबर अमर गईद उदार ger कपूर रसामल, सामल- सिंग- सिंगार चन्द्र चवल पंचानम, कानन नायक एक fafa गज-विडिव सुधारसि द्वार सिरि अभिशेक वीहर टोडर नवसर नवसर मधुकर वृंद सुंदर अभिय रसागर, सागर-नंदन चंद विनयर तेजि दीपंत जीपत तिमिर अभंग सोवन इंडि घरी पर कीच मति ज्यु गंग मंगल क्स अभीभरत कंठि परीठीय माठ पवन सरोवर निर्मकि जबकि रम बराक मोडीय नवि-रथमावर ग्रावर डीर-निहाय जगमम ममय नयनुं काम विहान पारमपि ममरेड मादक मति पर गो और पीवर्धन बड़े लाचन के साथ किया है। का गठन विविध उपमानों के साथ किया है। पुरुषों का काव्यों में मिलता नहीं, परन्तु कवि मे मे भिगाम का इसी कवि में विनाथ का विनाथ प्रकारका ने किया है। वन की बाकारिक इबना देखिय:
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy