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________________ ४४९ सागरनेमिफा ********CESTE ( रत्नमंडल गणि) सं० १५०० aaaaaa88888 श्री देसाईमोहनलाल ने इस कृति की सूचना अपने ग्रन्थ आपणा कवियो मैं दी थी पर इसका कस्ता उन्होंने भूल से सोमसुन्दरपूरि लिख दिया था। परन्तु वास्तव में इस रास का करती रत्नमंडन गणि है। श्री देसाई ने इस रचना को प्रकाशित भी किया था पर किसी गुजराती पत्र में प्रकाशित होने से यह रक्षा arraft अप्रसिद्ध ही रही। १५वीं शताब्दी की उत्तराध की यह रचना अत्यन्त महत्वपूर्ण काव्य कृति है जो अद्यावधि अप्रकाशित है। रचना की प्रतिलिपि श्री अगर चंद नाहटा के अमय जैन मैंथालय में सुरक्षित है। देवरत्नसूरि फागु की भांति इसमें भी कवि ने अनुष्टुप वृत्तों में काव्य का संसार संस्कृत श्लोकों में दे दिया है। पूरा काव्य एक सुन्दर प्रबंध है। जिसमें कवि ने विविध छंदों का प्रयोग किया है। कवि की शैली पर्याप्त स्पृहणीय है। वजूद चयन कोमलकांत है समास बहुला शैली में कवि ने फागु को वास्तव में रंग सागर ही बना दिया है। इसी रचना का नाम श्री देसाई ने नेमिनाथ arre का भी दिया है। पर रंगसागरनेमिफागु और नेमिनाथ नवरस फागु एक ही रक्का है। नेमिनाथ की क्या कवि ने बाल्यावस्था से ही वर्णित की है। विमा देवी पुत्र जन्म का उत्सव मनाती है उसका क्या उसका कप वर्णन किया है। 'किवोर होने पर ष की रानियों द्वारा कीड़ा में नेमिनाथ को विवाह के लिए बाध्य करना, बराड चढ़ना, क्या नैमि का पुनः लौटना पड़ के कमी होना बीर मिलार बार दीक्षित डोकर निर्वान प्राप्ति है। वस्तु या कथा तव में कवि ने कोई आदि भी पटना पूर्व मी नहीं रही है कर्मों में राज्य वर्णन, रूप या नव विवर्णम बराव काका, हामी घोड़ों का बरातियों के बनने वाले मोच्य आदि १० मर्जर कवियोः श्री मोचनका कहीवेद देसाई प्रथम भाग ० १२-१३ २- वही, वही पृष्ठ * १०-१५ जुलाई अगस्त १९१५। ४- ० पूर्नर कवियोः श्री देबाई- ४० ३२-३३ ॥
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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