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कामि गुणधर मंगल चलता रंग
केलीथर्थ कुजलीये, साथल जुजलीए
कटि जिसि कैंसर तक नामी गंभीर निकलंक, उरवरि उन्नतर श्रीवच्छ डिलू ए कुसुम-कली जिम अंति, आंगुलही दीसंति,
कमर कॉबडी पलानी हे नेह बोडडीए
संग सरीक कंठ, प्रगटिउ गुडिरठ कंठ,
बंध पुरंधरुष अधर ने रंग धरू प
अधर कुंअर केरा तुर्डि, राडि बढई प्रवाल,
कैंप डालिज जीमई, जीपईविजित प्रवाल
सकल की नित्र दासिका नासिकाइ शुक चैच
वदन चरण कर जला कूजला पदमप पंच
नेनि त सुह विमणिम चन्द्र अच्छइ निसिदीस,
देवनहीं यह उजली मलहलह क्ला बत्रीस
लोचन विकसित कमल कि अमल किरणु अणी आल है हर सेसि मंडल बैंडलसित एडवाल
देता दामिनी कुली अधर में, जाची प्रवाली जिसी कीas संजन पंडि डि हरिता धारा जिसी नाका बारी बीन वाली महिनाकी बड़ी बीडी काली कि बहुमा कुमार कि बीजाइ लमही । कवि ने कृष्णवनेम आदि की का क्रीड़ा और डेली बादि का वर्णन किया है। जिसमें बाद का ध्यं भी जा बाता है। पूरा काव्य तीन बेटों में विभक्त किया जा सकता है। प्रथम में नेमिनाथ की कम सम्बन्धी लीलाओं का वर्णन कवि ने प्रस्तुत किया है। दूसरा व तीसरा बी के वर्णन बातों के विविध रामरंग, नारियों के उत्कार और राजुल का विre के लिए सज्जा वर्मन मादि मा बाये है। साथ ही कवि मे योजन वर्णन, इवारिका वर्णन मोग्यपदार्थों का वर्णन,
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बराव का वर्णन वही ही चलता से किया है। कुल वर्णन इस प्रकार है: