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________________ वनि वनि विकसई वेउल खेउ लगाडई चीति दीठा बासह मंडव मंड वधारई प्रीति मजारि मधुर मि मीठीय दीठीय जव सहकारि तव मत मागि न लागइ ए लागइ विषय पिकारि सामली मन अनु आमली ओमलि फलिय अनेक वर्षकाल वि मालती माल वी रहीय स एक ' जल क्रीड़ा में रानियों का सौन्दर्य और विवाह के समय राजल का रूप वर्णन भी कृति के अन्दर काव्यात्मक स्थल है: गति रसि हंस हराविय आविय मनई मेलि पाठी अलि हरि रमपीय विमपी करिवा केति हरि मींगा परी पापीय राषीय छोटई प्रेमि ते हिय वरणि सनेउर देवर नाई नेमि ते सवि हरि सत कारिय धारिय जिम धुमंत ताई बीडिय कमालिनी रमलिनीसक प्रमत चाई धसई ति अवसई विलाई इसई अबाहु अधि व संधागठी बाकी न सकई बार राजमती का भार और सवा कवि ने अत्यन्त सरल भाषा में किया है.. मला कर कि सुरक्षाडि बरसहि अमीरस बाणि मैन कृषि किर गाविव षामिय सारंग पानि हई मन पब वीषिय वीषिय उग्रम राब गरि महीप राबीमावि दीपशिक्षियण माह चमकति बालाप मनमावि बडि बबभूगवाल शिवन सुखा बासी पाडळी समाल हिं बाक्षिय प्रविरिदि सई व भागि कामवि शायि बाविय बाब पनि 1. मुर्जर राधावली. ६७ २. वहीए. ८ - -
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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