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________________ ४३५ संख इलिई जिणि पूरिय भूरिय हरिमनि जंपु टोल टलक्कड़ रैवत दैवत मनि आकंपु सारंग चाप चैडविय उविय बाहु नइ प्राणि हरि हेला ही डोलिय तोलिय तर बहु प्राण त्रिभुवन नाथक ज्ञानिय मानिय वरु संसार नेमि न यौवन परिगए अरणय धरई दसार कहई कहावर ते जिम तेजि मनोहर नाडु १ तिम तिम किमई न मानइ ए मानइ मनि अति बाडु कृष्ण की स्पर्धा ही नेमिनाथ की विवाह के लिए प्रस्तुत कराया गया। कवि ने फागु नाम सार्थक करने के लिए वसंत का बड़ा सुन्दर वर्णन किया है महत और नृत्य और तरुणी दल का प्रासादिक वर्णन उल्लेखनीय है : रमइ रमापति रोणिय आणि आपण पाि तीणि उलई नवि दीपइ ए दीपइ ए ज्ञान प्रकासि त अवतरिउ रितुपति तपति सु मन्मथ पूरि जिम नारीय निरीक्षिण दक्षिण मेल्हs सूरि कीजs अवसरि अवसरि नवरसि राग बसंत तमी ई दल दीठा रस सारस भमइ संत oes areनिकंदन वंदन fee for नाथ मारिय नारिय नवा तक रितु राज का शुभागमन डुबा, मौवन की तूफानी दिशा और प्रमाद उसके साथ थे। सूर्य ने दक्षिण दिशा को उस प्रकार छोड़ दिया जैसे कोई निस्सहाय नारी को छोड़ देता है। कवि ने दक्षिण विद्या की निस्वहाय नारी से तुलना की है। दूसरे म निवेद में ज्योत्स्ना की भांति श्वेत शरीर कहकर कवि ने सुन्दर उपमा का निर्वाह किया है। मैं १- नहीं प्रन्थ पृ० ६६ १० वी पद ८-९ ० ६६। . १
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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