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संख इलिई जिणि पूरिय भूरिय हरिमनि जंपु टोल टलक्कड़ रैवत दैवत मनि आकंपु सारंग चाप चैडविय उविय बाहु नइ प्राणि हरि हेला ही डोलिय तोलिय तर बहु प्राण त्रिभुवन नाथक ज्ञानिय मानिय वरु संसार नेमि न यौवन परिगए अरणय धरई दसार
कहई कहावर ते जिम तेजि मनोहर नाडु
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तिम तिम किमई न मानइ ए मानइ मनि अति बाडु
कृष्ण की स्पर्धा ही नेमिनाथ की विवाह के लिए प्रस्तुत कराया गया। कवि ने फागु नाम सार्थक करने के लिए वसंत का बड़ा सुन्दर वर्णन किया है महत और नृत्य और तरुणी दल का प्रासादिक वर्णन उल्लेखनीय है :
रमइ रमापति रोणिय आणि आपण पाि
तीणि उलई नवि दीपइ ए दीपइ ए ज्ञान प्रकासि त अवतरिउ रितुपति तपति सु मन्मथ पूरि जिम नारीय निरीक्षिण दक्षिण मेल्हs सूरि कीजs अवसरि अवसरि नवरसि राग बसंत तमी ई दल दीठा रस सारस भमइ संत oes areनिकंदन वंदन
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तक रितु राज का शुभागमन डुबा, मौवन की तूफानी दिशा और प्रमाद उसके साथ थे। सूर्य ने दक्षिण दिशा को उस प्रकार छोड़ दिया जैसे कोई निस्सहाय नारी को छोड़ देता है। कवि ने दक्षिण विद्या की निस्वहाय नारी से तुलना की है। दूसरे म निवेद में ज्योत्स्ना की भांति श्वेत शरीर कहकर कवि ने सुन्दर उपमा का निर्वाह किया है।
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१- नहीं प्रन्थ पृ० ६६
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वी पद ८-९ ० ६६।
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