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________________ ४३४ १ नेमिनाथ का Oooooooooooo (जयशेखरसूरि ) सं० १४६० । नेमिनाथ फागु नाम से अनेक रचना १५वीं शताब्दी में उपलब्ध होती है। बहुधा उन सब फार्गो की कथा वस्तु में आंशिक अन्तर ही परिलक्षित होता है। सं० १४६० मैं श्री जयशेवर सूरि रचित नेमिनाथ फागु मिलता है। | १५वीं शताब्दी के उत्तरार्द्धय में मिलने वाले लगभग सभी कार्यों में यह कृति उत्कृष्ट और मौलिक है। माषा, अलंकार और छंद सभी दृष्टियों से यह महत्वपूर्ण है। यह रचना प्रका वित है तथा प्रबन्ध शैली में लिखी गई है। वर्णन शैली में एक विचित्र प्रवाह है । (जयशेखरसूरि स्वयं संस्कृत के अच्छे आचायों में से थे। खर्जर रासावली में इस समय कृति का सम्पादित पाठ प्राप्त है। '' नेमिनाथ फागु ५७ छंदों में लिखी एक प्रोडुरचना है जिसमें कवि की अलंकारिक पद्धति और वर्णनात्मक भावप्रधान पद्धति उल्लेखनीय है। रचना में नेमिनाथ और राजमती का जीवनवृत है। फागु कृति होने के कारण कवि ने वसंत का वर्णन बड़ी सुषमा के साथ किया है। प्रारम्भ में कवि ने गुरु के आदेश का उल्लेख कर नेमिचरित लिखा है। द्वारिका का परिचय कवि ने प्रारंभ मैदिया है: दीपई जिणि जिन मंदिर मंदर विवर समान fies fafe fafe डाटक हाट कड्रंक विमान नदिई धि थामिय वाची अवर मारामि मणिम पण संपूरय पूरिय द्वारका नाम १ उक्त उद्धृधरण में डाट कहूं क विमान प्रयोग उल्लेखनीय है। बालक नेमिनाथ के पराक्रम का परिचय कवि एक ही बंद में दे देता है। उधरण की प्रत्येक पंक्ति मै दमक और आवृत्ति अनुस्पष्ट है १- गुर्जर राबावली -नायकवाद प्राच्य सीरीज- सी० १८ पृ० ६५ ।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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