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नयषि न देई ना मोर मध्य अहे सरवीर सोहि राण्डी सहिधि पाली सीवर माली गरि करि बीडली माहि कपूर । महे मवर्कदि हि मन मोहीउ, लकिड लाइम मावि चतुरतुरंगी संवरी पूरि केरी नारि पाइ करि सबि मराठी सोरठी अवि पुजाणी बर्मत तनी रसि खेलती प्रीय पति कविसमामि मालिया बड़ तेबड़ी सरोवर केरी पालि पालि मल्टी पटोलकी की लि सरोवर माहि मोमीन कामिनि न पीनू नवसर हार कीनी बाजति रेवड़ी पीनी माची मात सीप परी परि पापीय लोटिशि बिना छोड मा सिरीसी गोरड़ी दापि अति धड मोर आहे हीरखा वहरि पूजीउ किया सिवराति गोरी न सरि पारीदीड नि राति जोमहरि यह बाराी माबि गाय विराकि
मोरी म मारि बाहरी बलराति "मासी कवि वाक की पराग बिलरित का प्रयोग किया है। का कवि में कामु का देव लिया। विमें रंपरेली, बवंत कीड़ा और नामद की प्रधानता :गोडा बी अधिकार मापा अनिनिरि
मम पिसोरी । इस बार साली गराई रायगयों की तरह का काव्यों के किसी पणिन ने कर मया था। बस का इस प्रकार जिला परिषन का प्रभाव है। ना छोटी है पर मारपूर्ण है। कवि ने मणि मारवार का प्रामादिक वर्णन किया।
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