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________________ ४३२ कहना बड़ा कठिन है । परन्तु यह तो निश्चित है कि रचना का करती दोनों गुणचंदसूर में से एक है। कुछ भी हो, दोनों की ही स्थिति असंदिग्ध नहीं है। यो माया का रूप, छंदों का प्रकार, शब्दों का चयन और वर्णन की पद्धति के आधार पर यह अनुमान किया जा सकता है कि यह कृति १५वीं शताब्दी के उत्तराध की है। यह भी संभव है कि यह वि०सं० १५०० के आसपास या बाद की रचना हो पर सं० १५०० विक्रम के आसपास की अनुमान कर लेने पर यह कहा जा सकता है कि श्री गुणचंदसूरि १५वीं शताब्दी के उत्तराध वाले ही रहे होगे। जो भी हो कृति, भाषा भाव, छन्द, रस, काव्य और अलंकार सभी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण है। जिसकी उल्लास पूर्ण अनुभूतियों का परिशीलन आगे के पृष्ठों में संक्षेप में प्रस्तुत किया जाता है। कवि ने १६ कड़ियों में ही काव्य कासरस वर्णन प्रस्तुत किया है। वसंत वर्णन: अ फागुण फलीअबीजोरडी पुहतल मास वसंत वनियन तर कूपला केसूक सम अनंत कामणि कारिणि ममरल भमतु मामि राति काची कलिय में मोदी मोदी नव नवि भाति erer कुली afta ली परिमलरहिणु न जाइ बालि मोबान प्रीय गड तु इस हीवडे न माइ अहे बहिरनि पीव पटोलडी ओढणी नवरंग चीर विरह तुम्हारी माइला मयष न सूक मीर भरत पर क्यूट गति पकाउलि हार tator सकोमल बालती पाये नेर मनकार जसी वस्र पाडी बोबडी काजलि रेह areer मा का वि नारियों का सौन्दर्य वर्णन और रूप गार्बन कवि ने भाव प्रवण होकर प्रस्तुत किया है। गुर्जर धरती की स्वस्थ सुरंगी कुन्दरियों का कवि श्रृंगार वर्णन करता है:arthe stars अकीय परि वाडिम लडा देव 2
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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