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________________ बसत फागु (गुणचवसरि)-सं० १५०० का उत्तराईध । १५वीं शतादी के उत्तराईध में एक अत्यन्त माल्हावपूर्ण कृति वसन्त विलास है। इस कृति का शिल्प लगमग अब तक उपलब्ध सभी फागु कार्यों से अलग है। इस फाग की कथा वस्तु न धार्मिक है और न चरित प्रधान । वरन् यह काव्य आइयोपान्त श्रृंगारिक है। कवि ने पूरा काव्य वसंतत्री के वर्णन में ही पूरा कर दिया है। कवि का नखशिख वर्णन भी अभूतपूर्व हुआ है। प्रारम्भ से ही कवि ने अंगार का इतना खुला वर्णन किया है।यवपि जैन मुनियों व कवियों में श्रृंगार का इतना सुला वर्णन अन्यत्र नहीं मिलता। यह उनकी साधना व प्रवज्या के नियमों के विपरीत है परन्तु फिर भी कवि ने नवशिख वैस सामारिक काव्य का वर्णन नियमों का अतिक्रमण करके भी बड़ा प्रसाविक किया है। काय शिल्प के रूप में यह रकमा एक मोड़ प्रस्तुत करती है।वसंत वर्णन अब तक यहयपि फागु काव्य की लाक्षणिक विशेषता मानी जाती रही है परन्तुकेवल मात्र वसंत वर्णन ही फागु काव्य का प्रधान तत्व नहीं था उसके साथ क्या तत्व श्रृंगार रूप तथा नखशिख वर्णन भी मिलते रहे है। प्रस्तुत काव्य में कवि ने कथा वत्व की एकदम उपेक्षा की है तथा वसंत फाग में मधुरितु के आने पर संसार के मनुष्यों के सामान्मत: आल्हा औरतस्याह का चित्रात्मक और उत्कृष्ट वर्णन किया है। अशात जैनबर कविकृत बर्वच विलास काव्यों जिस प्रकार वसत के प्रसाविक चित्र है जीक इसी प्रकार कवि श्री शुगचब मरि ने वसंत कागु में मधुमास की वसन्त्री , किसलयों का इलावा स्वरुप, मलयानिक का मौभिख मान, कोबल की माधुरी और मारका सम्मोहन और मारियों के समक्ष और उल्लास गान का सचा चिन किया है। प्रस्तुत काव्य की प्रति घाटय के केसरबाई ज्ञान में विर में सुरक्षित है।'प्रति कहीं लेनका स्पष्ट नहीं है। काव्य का कत्ती गुणचंद मूरि मी बहुत निश्चित नहीं है क्योकि नी और १५वीं बताब्दी में गुपचंद्रसूरि नाम के दो कवि बाबा हो चुके है इन वोनों में से कृतिका रचनाकार कौन है यह -प्राचीन कामु प्रहः डा. बाडेसरा पु. ५५-५६ १- बही
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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