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________________ ४३० अरुणी कमी वरुण चित्त उहणी जिम मोडइ सिवार सिंदूर पूर किरिवन सिरिसोडा कालिणि कामिणी राजहंस कामिय मि माइ नव पल्लव अहसोग सोग विहिणि मणि आपाइ कोमल कूपल पहिय चितित करवाल नमालो राषइ सिरसिज मयणराय फिर फल मया विलो . उक्त प्रासादिक वर्णन के अतिरिक्त कवि ने गंधसार, धनसार, चंदन, कपूर आदि के अंग रास, यौवन विलास आदि सब का वर्णन सरस 'क्यिा है: आरामिय आराभि नाम साभिय बोलावय विमल कोमल कलिय फूल अमूल अणावह कुमसमहार नियकरि करै वि राणी पहिरावय रयण ममाल विसाल माल सिरि पुल भरावा २ गंधमार धवसार मार केसर रस केलवि कारह अंगहि अंगुरास कसथूरी पलवि जोबन लावन ललिय देह किरि अमिय कटोरी मम्बाउन मपि रमिप्रिय बीय मंधव मोरी इस प्रकारकवि ने काय काय की लाविक दिवसानों का वर्णन किया है। भाषा सरल है। भवों की बत्वमा स्पष्ट परितावित होती है। इस छोटे से मिकाव्य कवि ने काव्य के सभी प्रमुख तत्वों का समावेश किया है। ऐसे छोटे काव्यों में इन जैन कवियों में बाबावीस पाव भरे है। रचनामेव ज्या कागु काव्यों में महत्वपूर्ण - जाननमहासासरा प्राचीन काय महाडासाडसरा ०४८।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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