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हयगय जुलसीलवस, जक्स खेचर जस किंकर, हास कास संकास जास जसु गाई किनर वारु खेली वेस बाल पहिरवि वर चोली
जम आगइ नाचति रंगि बहु मंगहि भोली कवि ने प्रकृति वर्णन और बसंत श्री कावर्णन न करके अपनी प्रकृति जन्य बहुजाता का परिचय दिया है। नाम परिगणन कवि ने खूब कराया है। काव्य प्रवाह पर्याप्त है। अनुप्रसा, यमक उत्प्रेक्षा सभी दृष्टव्य है।
आविय मास वसति संति सो चडय रिवाडी पेखय चंपय जंबु अंड तरु फूलियबाड़ी विहसिय तिहि मचकुंद कुंद अरविंद अपार 'निरमल परिमल महमहए सेवंत्री सार फूलिय सवि वणराय वाय वायंती लहका चपउ चंपइ अवर सीम निय परिमल बहकइ केवइ सेवइ भमर देव देवि जिमरंगि विमल सरस फल रंगि चंग लागइ नीरिगइ चंचल पल्लव हाधि साथिरिमान संवार कोयल कामपि भारवापि सहकार करेइ
राता के मुब फूलियसोहा रवि प्रिय संग गाणे नवरंग पाटड़ी बोढी बन सिरि मि बेडल वेलि अमूह प रस मेला मील करबका विकास काम सकरन बीड बार र अपार बार पुषि बरपा काला वाडिन फूल पुरंग अंग विशु मेष निहाल पंचर चारि विधि कोयल वान्ते बस सिरी चिरिधि अंधिकब ममरमर्मत