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पुरुषोत्तम पाच पान्डवफाग। मन्न्न्म
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(अज्ञात)
श्री नाहटा जी के संग्रह में १५वीं शताब्दी के उत्तराईध की एक पुरुषोत्तम पंच पाडव फागु रचना उपलब्ध हुई है।जो उसी सं० १४९३ की संग्रह पोथी में लिखी है। रचना शालिमसूरि के पंच पान्डव चरित्र राम की ही माति पाच पाडवों का चरित वर्णन करती है। पर कथा वस्तु में थोड़ा अन्तर है। रचना का कती अज्ञात है तथा रचना काल भी निश्चित नहीं है।
पुरुषोत्तम पाच पाडव फाग में कवि ने पाडवों के द्रौपदी विवाह से ही काव्य प्रारंभ किया है। पान्ह राजा द्रौपदी व पाचौं पाडवों को साथ लेकर हस्तिनापुर आते है। राजा के सम्मान में उत्सब होते है। इसके पश्चात कवि ने कुला पर्वत पर विकसित वसंत श्री का सुन्दर वर्णन किया है। वसंत वर्णन फागु काव्य की लाक्षणिक विशेषताओं में से एक है। गंगा और यमुना के बीच में स्थिति इस पर्वत पर यावव और पान्डव क्रीडा करने जाते है। कृष्ण और कुती पुत्र खूब क्रीडा करते है और कृष्ण को नारद रिकि तीर्थ का महात्म्य बतलाते है और फागु समाप्त हो जाता है।
छोटी सी रचना में कवि का वर्णन कौशल खुब निचरा है। कवि का बर्षन अत्यन्त स्वाभाविक और सरल है। कवि ने रचना को मास में विभक्त किया है। पाका अत्यन्त सरल है। १५वीं शताब्दी के उत्तरार्दुष की इस कृतियों में पापक अत्यन्त ही सरल हिन्दी बिाई पड़ती है अतः शब्दों की सरलता, लोक प्रचलन और तत्समता स्पष्ट है। मगर प्रवेश के समय नागरिकों का उत्सव वर्णन देखिए:
अहे साये करिड गोविंद बाम परि नामक आवा अल्बाभि बिहरह बारि लो पुरि सोह करावा बडिया कोरस उग मेगा दम्पन बिसल्यारि मैव विधि करि पुर विकास महियल भवतारित परि परि मोद्रिय का पारिज मूडिय उठा लिय
१-प्राचीन का संग्रहा डा. बाडसरा पु.४३-४६॥
बाय बीकानेर on