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इणि परि जग जगउँ तर कंतर रतिवर नारि सहिड वसतिहि घाउ आस पासह बारि अवसरु नहीं अमीणउ ही चिंतय मारु बुद्विध विभासिय नाडउ घाउ रति भरतारु (३० ३६ प्रा०फा०स०)
इस प्रकार कवि की अनुप्रसा यमक योजना प्रत्येक पक्ति में है। पाषा की सरलता मधुरता, प्रवाह और अनुदों की कोमलता उक्त उधरणों से स्पष्ट है। कवि की उत्प्रेक्षाएं भी उसकी काव्यात्मकता में योग देती है। रास में कवि ने गीत नृत्य, लय, ताल आदि का उल्लेख किया है अतः स्पष्ट है कि फाग रचना के लाक्षणिक तत्वों का समावेश भी हुआ है। पूरा काव्य आवरप्रसा वाले दोहा छदो में लिया गया है। स्थान वर्णन प्रशस्ति में लिखे हुए पुरानी हिन्दी के पैसे गीत काव्यों में जीरापल्ली पार्श्वनाथ गु का स्थान अपने ही प्रकार का है।