SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 458
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२३ इणि परि जग जगउँ तर कंतर रतिवर नारि सहिड वसतिहि घाउ आस पासह बारि अवसरु नहीं अमीणउ ही चिंतय मारु बुद्विध विभासिय नाडउ घाउ रति भरतारु (३० ३६ प्रा०फा०स०) इस प्रकार कवि की अनुप्रसा यमक योजना प्रत्येक पक्ति में है। पाषा की सरलता मधुरता, प्रवाह और अनुदों की कोमलता उक्त उधरणों से स्पष्ट है। कवि की उत्प्रेक्षाएं भी उसकी काव्यात्मकता में योग देती है। रास में कवि ने गीत नृत्य, लय, ताल आदि का उल्लेख किया है अतः स्पष्ट है कि फाग रचना के लाक्षणिक तत्वों का समावेश भी हुआ है। पूरा काव्य आवरप्रसा वाले दोहा छदो में लिया गया है। स्थान वर्णन प्रशस्ति में लिखे हुए पुरानी हिन्दी के पैसे गीत काव्यों में जीरापल्ली पार्श्वनाथ गु का स्थान अपने ही प्रकार का है।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy