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________________ ४२५ धरि धरि मंगल कलस ठविय वर वंदुरवा लिय उच्छायि घर घाट पवर पट्टोलिय सोहय १ नाचति किरि विम पुतलिय त्रिभुवन मनु मोहइ कवि का वीर में पान्डुओं कम वर्णन अत्यन्त सफल बन पड़ा है। शबुदों का चयन, आलंकारिकता और अनुप्रसात्मकता उल्लेखनीय है। वर्णन के साथ ही कवि पान्डव का एक चित्र ही प्रस्तुत कर देता है। वर्णन बहुत ही सजीव है: सहजति निस्वम स्व च पंचइ राजकुमार तहविह मायडिय रलिय लगि करविय सिणगार अहे काराविय सिगारू सारु सिरि मऊ छबक्कड़ कुसमहि सेहर सुमर परिय बहुर्गंधि बहुककर का नहि कुंडल उगमगंत लहलह लहकता कंठ कदल विलसति हार फलफल फलकंता तिलउ अंलकिय भाववट्ट पट्टस्य सारT कडिहि कटारा फामर्गत हाथिहि हथियारा जयकुंजर सिंगार सारखे गुपहि गिरा durier लय बिज्जहरिय बटुका भों के राल में डूबकर कवि ने नारियों का वर्णन किया है।दों की अनुप्रासात्मिकता और ध्वनात्मकता इष्टव्य है जो काव्यप्रवाह में वृद्धि करती है। भाषा की सरलता और अलंकारों की छटा काव्य का प्रसादिक बना देती है: : १- या ग्रन्थ पृ० ४३ १ aas arrea कि किमीय रनिकमिसार safe चार मनि दंडमव पडियम फुलकार अहे मडियम मकार सारमणि ने उरयाली sure कस कस कविवावर फाली *मन म त उरि उत्तम बोली ot ~~~~) पटवीडी
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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