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जंबु कुमरु इणि उच्छवि, मच्छवि आठइ नारि मुज नि माड परणाविउ आविउ नियघरबारि वास भवनि तिई पहठउ, बइठउ गउरख मारि आठ नारि आगल रही सहीय सहित सिणगारि केसर कुमकुम आटि उलटि करि मुविसाल सिदि संथइ उगोतीय मोतीव तिलक माल नयणि तुलीय जमणाजल काजल सामल रेह करइ कडक्व तरंगिहि रंगिहि सुरह सिह अगर कपूर कस्तूरीय पूरीय रहइ पोलिक नयण कमलि ससि निरमल रमति रची बोलि का नि हि कतिहि मंडल कुंडल लहलहकति नवासिणगार सहोदर नगोदर भल अलकति उपरि कैचूउ तडक्कइ लडकइ नवसर हार कणयवन्न करि चूडउ सडउ तस मलकार पहिरणि चीर पटलीय बउलीय मूल विचारि चूनडली नवरंगीय चंगीय ढाणि सार
इणि सणगार न राबड़ समचइ रसि अमरत्व नि नारी क्यानक थानक बल न बिस्त अग नबी प्रति बैधइ रोषा निज मनि काम चार राउ मा भडिन प्रभड पडत वाम पानमा झिा सका विर बवरागी निब माय पिय सिरसल, बरस जन मागि नमा आइ बापपि पनि प्रभवर पिय माधि पामीवरम नियम सोहम मार हाधि (४४-५६)
प्रा फा०म०. २८-३०॥ इस प्रकार कवि ने हमारे सामने श्रृंगार का उत्कृष्ट वर्णन कर उसका परिहार