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अति सरलिय भूय जुयलीय कुयलीय कमल समाण पाणि जयल नहकिर णिहि अरुणिहिं राग निहाण मनमाथि ठवीय पयोहर मोहरसावलिलैम लवणिम भरीय अंकुरीय पूरीय रागि नितंब त्रिभुवन मोहणी तिवलीय, त्रिवलि जिसी भूगमाभी काम केलीबह दोक्ली छलीय रसालीय नाभी
कीरति धंप समाणीब आणीय उरु समान
मयणराय आरोपिय लो पिय जगजपमान चलति कमल हरावइ, नावइ कुणि उपमा नि कन्या एउ मलुणिय, कुणिय नवि गुणी मानि हंस बसहगय गमणीय रमणी नयण मिलति
जैबु कुमर नवरंगिहि भगिहिसिणगारंति (२५-३५) उक्त वर्णन में प्रवाल की भाति अधर, दाडिम की भाति देत पंक्ति, दिनकर काशि की भाति कपोलों की आमा कमल के समान कोमल युगल भुजाएं, पयोधर मनमथ के स्तबक, रागपूरित नितंबों की लावण्य आभा, मगनाभि की भाति काम की बाउड़ी, की ति स्तंभ की पाति अगल बंगाए आदि सभी उपमान सुन्दर वस्तुतः वर्णन पद्धति को देखने यह कहा जा सकता है कि संभवतः इसका की जोवर भरि ही हो पर यह बात प्रमाण पुष्ट नहीं है।
सौर्व वर्णन और गार वर्षन में कवि की पकड़ बड़ी मनोधी है प्रथम मिलन रात्रि में ही शामें कन्याओं के सौन्दर्य व भार वर्णन करता हुआ कवि उन्हें बंडू स्वामी इबारा आड अवधानी और दृष्टान्छों के निर्वद का आनन्द स्पष्ट करता है और पोर रस में इसी बाग नामिका चंबू स्वामी के साथ दीक्षा की ओर आकर्षित हो पाती। कवि ने वस्त्र परिधानों और आभूषणों में लिपटी कम्मामी की रखा का शम इवारा पराभव विसाया है। यौवन के इस अभिन्न स्त्रोत और उमार में एक रस वरिष्न ध्यास का शमन कवि ने निर्मद इवारा किया है। प्रमय चोर भी उसके ५०० साथियों सहित उनके साथ दीवित हो गया: