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बमणुलो मातउवण ममारि मरुक मणुमोहइ दाडिम दीसइ अतिसुरंग केसुअडउ सोहइ दाडिम दीसइ अतिसुरंग केसुअडउ सोहा कोइल कलिरख मागलउ किरि अमियह ऊलट
मवणराय मडि पामियर तिहुषण उपरवट ( प्रा.फा.सं० ६-८ पृ०२३)। कवि ने प्रतिमा पूजन विधि तथा नीराजना गान, नृत्य, भवजन, पूजा आदि का वर्षन मी सफलता से किया है।समास बहुला शैली में कवि ने काव्य कौशल प्रस्तुत कर जन साधारण में राभि स्थिति पार्श्वनाथ की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की :
अह नागनाह कण मंडलिहि मडिउ जिणनायक मेछ माण नीवलग सयल वैङ्यि फलवायकु सीह जैम एकल्लमल्ल वमाहि बईठठ विधन गयंद विहारण विहु नयणे दीठ चंदन कुंकुम पण कपूर कसथूरिय लेविशु पूज रचिमु पहु पासनाह करि न्हवा विलेविष भारतीय मंगल पईयवर ध्वनि वो ढोइय माल नालिपर बहुल जन माफ लेखो वा लगि चंचल चोर चउर पहिया वाय तो कमि कोष रोम बोग संचय संबाबा वा ठगि इट्ट दरिद्र विवइ दीमत्कापिठ (११- प्रा.फा.स. पू. २४)
इस प्रकार रमा छोटी है परन्तु प्रालि मील के स्म में कागु कायम महत्व इस स्पष्ट हो जाता है। पापा बरक मौर वत्सम बड्दों से युक्त है।