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रावमि पार्श्वनाथ फागु,
रावणि पार्श्वनाथ फाण की बडौदा ज्ञान मंदिर की पोथी नं० ४६७७ के आठ पत्रों में एक फाग प्रसन्नचंद मूरि कृत रावषिपार्श्वनाथ फागु रचना उपलब्ध हुई। रचना की प्रतिलिपि अभयजैन ग्रन्थालय में भी सुरक्षित है। प्रसन्नचंद सूरि जयसिंह मूरि केशिष्य थे अतः इनका काल सं० १४२१ के आसपास ही अनुमानित किया जा सकता है।
रावणि पार्श्वनाथ कान का क्या शिल्प पूर्व वर्णित फागों से भिन्न है। इसका वर्णन कवि ने प्रशस्ति काव्य के स्स में किया है। रावमि अलबर के पास एक
व है। वही पार्श्वनाथ का मन्दिर है। कवि ने १६ पदों की इस छोटी सी रचना में ही गाब रावमि, पार्श्वनाथ का मंदिर तथा वनश्री और बसंत श्री का वर्णन किया है। इन जनभाषा कवियों के काव्य में यह लाधव अत्यन्त अधिक मिलता है। छोटी सी रचना में अनेक तथ्यों का समन्वय कवि ने प्रस्तुत किया है।
इस रचना में फागु काव्यों का मधु महोत्सव वनश्री वर्णन के रुप में मिलता है। तथा पार्श्वनाथ के मंदिर में होने वाली पूजा का भी कवि ने मुष्ठ वर्णन क्यिा है। रमा प्रकाशित है। साथ ही इसमें क्या शिल्प की दृष्टि से भी कवि ने थोड़ा परिवर्तन क्यिा है। बड्यावधि लगभग सभी कागु नेमिनाथ के जीवन पर ही मिल है परन्तु कवि की उस रचना परिवाधान होने पर भी बीर्थ या स्थान विशेष की प्रबस्ति में लिखी व रचना है।
पूरी रचना को कवि ने पास में किसक्स यिा है।पूर्व पृष्ठों में भाव पर विचार किया जा चुका है। कवि ने पूरा का इशा या रोला छंदों में लिया है जो पूर्व परिचित है।
कवि के काव्यात्मक स्थलों के कुछ उदाहरण इस प्रकार है:
कवि नेगी वर्णन नाम परिमानात्मक रुप विभिन्न वनस्पतियों की वासन्धिक पुकमा देसिए.
बाल विशाल रसात, मालहि बात धमाल पारसपीपक पप घलास पुर्वप्रियात