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श्रवण हिंडोला रइवर नरवर किरि निरमोल सोहहि कविहिं ससहर जाइ पोल उन्नत सर लिय नासिक सासिक लइ आमोद्ध विलसरि कतिहिं दद्विहि नवकुंद कलिय विनोद्ध जापठ अहर पवाला आला अभूतह ताज कंतु सुकोइल समधुरु मधुरु करइ जग दासु तस पुज सरलिय तर लिय पीन पयोधर तंग
उयरि लंका लिय वालिय लालिय त्रिवली तरंग
गजपति करवर पीवर उस्य हरिणी बंप सकल सुकोमल नवदल पवतल मुणि हि अलंध १
वस्तुतः दोनों वर्णनों में, करवाल की पाति वेणी पायल अमिय चंड निर्मल दर्पण की प्राति कपोल तिलफूल इवनामा मादि अनेक ननशिस के मौलिक उपमान कवि ने जुटाए है।
कृतियों के अन्त में राजुल का विलाप और 'निर्वेद उसे मार्मिक बनादेता है। इस प्रकार दोनों फागों के मौलिक प्रयोगों और काव्यात्मक स्थलों का प्रयोग क्या प्रवाहपूर्ण सरल भाषा का परिचय उक्त उद्धरणों द्वारा मिल जाता है। दोनों फागुकारों ने नेमिनाथ के निर्वेद का विश्व शाम मीत बयान, दुबारा यिा है। इस कतियों बाकालीन सामाजिक प्रथा, स्थानीयवासावरप बाधिक सुन्दर चित्र प्रस्तुत किए है। क्या परंपरा में बस्तु मित्र को छोड़कर कषियों ने वर्णन शैली और दृष्टिकोष की मौलिकता प्रस्तुत की है। साथ मे पिनाथ का पारिवारिक संबंध, नैपिनाथ की कृष्ण की पटरानियों के साथ बह कीड़ा, पटरानियों की उमरे छैन, विनोव मा विवाह की वी वादि प्रसंग कवियों ने मौलिक रक्स है। यों अब तक कि कामों बाधा क्या नेमिनाथ के पाणिग्रहण उत्सव से ही मिलनी जो भी हो, दोनों काम काम्बा विकास से प्रतीक है।