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भाषा सिमानेके लिए उक्ति व्यक्ति प्रकरण की रचना की। गोविन्दन्द्रका शासन काल सन् १९१४-११५४ ६. था। : गहड़वार नरेशे की देशी भाषामों के प्रति उपेक्षा मेवत १०१. ई. मे ११५४. तक अर्थात् ४ वर्ष तक क रही। पर यह आश्चर्यकारी घटना लाती है कि उपेक्षा के कारण दसवीं से १४वीं वादियों तक सारा साहित्य नष्ट हो गया। फिर यह भी तो सम्भव है कि शासक वर्ग ने की नये साहित्य सृजम के प्रति उपेक्षा की हो, परन्तु रचे गए साहित्य का में नष्ट हो जामा अस्वाभाविक सा प्रतीत होता है।
दिववेदी जी की यह धारणा भी सम्भवतः पाच शोध की अपेक्षा रखती है कि इन गार बताविकों में मध्यदेश में रचित कुछ भी साहित्य नहीं मिला। उक्ति व्यक्ति प्रकरण प्राकृत पैगलन में आये हुए छन्दों की रचना का तो स्वां दिववेदी, ने ही उल्ला दिया है। इसके अतिरिक्त और भी कवि इस युग में । पर उनकी भाषा देशी न होकर अपज की है। इसके कारण भी स्पष्ट है । उस समय देशी या हिन्दी का विकास ही नहीं हुना था . उसमें साहित्य रचना का प्रश्न ही नहीं उठता। उस युग की लोक भाषा का प्रमाण उक्ति व्यक्ति प्रकरण है। जिसकी भाषा अपच है। 6T• विवेदी ने यह स्वीकार किया है कि- वस्तुतः १४वीं बताब्दी के पहले मी पापा का प हिन्दी भाषी प्रदेशों में क्या और कैसा था, इसका निर्णय करने योग्य माहित्यमान उपाय नहीं हो रहा है। अधिक प्रामाणिक प्राचीन इस्लामिति प्रय और विकाता माविही उस भाषा परिचय मिल कता है। माय इसका ऐसा साहित्य उपलब्ध नहीं है बो का शिलालेख और न ( उति व्यक्ति प्रकरम) मिल जाते है। बताते है कि यार मय की और बोसमात की भाषा में बत्न मदों ग प्रबार बढ़ने कमा पा पर इस में ही प्राधान्य था।'
माटोको भान है कि दसवीं बाबी से बौदावीं पताब्दी तक रचित्र भांश की शाकि प्रामाविमा, विभिन्न मपक शिला और हिन्दी की कमी प्रामाणिक रचना भाव बही सिद्ध करता है कि जिस हिन्दी का
-हिन्दी गाय मागित- बाबा मारी प्रसाद दिवेदी, हिमतीय प्रबन।