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________________ ४०२ नैमि न मन्नइ ने देह स्वच्छर दाई ऊजल गिरि संजम लियउ इय केवल ना --- --- दयकरि दयकरि देव तुम्ह इर्ड अथ दासी श्री केशवराम काशीराम शास्त्री ने कवि की भाषा की पृष्ठ भूमि के प्रमाण में कुछ उदाहरण दिए है ये उदाहरण पबन्ध कोष में से है: उवयारह उवयारउ सब्लोउ करेs अवगुमि कियइ जु गुण करइ विरला जणणी जपेइ ----- छाया कारवि सिरि धरिय पब्चवि भूमि पति पत्वई हुई पत्तत्तणर्ष तक पर काई करें ति • कुमरपाल | मनचिंत करि चितिई किपि न होइ जिपि तु रज्जु सम्मति चिंत करे सइ सोइ उक्त उद्धरणी कवि की भाषा पर प्राकृत प्रभाव स्पष्ट है। क्योंकि प्रस्तुत कृति संक्रातिकालीन है इसमें उदूभव और तत्सम शब्द अनेक है। कवि की मका पर प्राचीन राजस्थानी या बूमी गुजराती का प्रभाव है। साथ ही जन गाया होने से उसमें सरलता और बोधमम्यता है। अलंकारों की दृष्टि सेमी कृति का कौवल युष्टव्य है। उक्त उडुचरणों में पक्तियों की परियां ही तत्सम शब्दों में लिबी गई है। · अलंकारों में विवेककर उपना, उपक, अनुशाद, यमक, उदाहरण वर्णन अपति आदि प्रमुख है। राजस्थानी संतानों और क्रियायों में हिडोलिक सलग लाडी टहल कोरडी व पीर छ आदि है। अनेक तत्सम शब्दों के कई मौधिक प्रकोष है- बाळा, काजल, ज्योर, निरडई, छं, बहिरनि sweet, नव बीs, बावडी, मोडणी, पहिरिणी, बड़ी, टडळ, मलपति, are site माह, केवडियास, बादि
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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