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________________ इंप पराविड जाइ कुसुम कसरी सारी सीमता सिंदूर रेह मोती सरि सारि नब रंगि कृमि तिल क्यि रयपि तिला सत भाले मोती कुंडल कम्निथिय विबोलिय करजाले मा निरतीय कज्जल रेह नयाणि मुंह कमति संबोली नगोदर कंठलड कैठि अनुहार विरोलो मरगद बाहर कंचया फुड फुल्लह माला करि कंकण मणि बलय चूड सलकावइ बाला रोला छैच में कवि ने यह विप्रलंभ काव्य लिखा है जिसको तीन तीन कड़ियों के आधार पर सात छंदों में बाटा जा सकता है। काव्य निदान है। प्रारंभ में तो कवि श्रृंगारिक रहा है परन्तु अन्त में सारा दृष्य ही परिवर्तित हो जाता है। नमिनाथ की विरक्ति पर कवि राजल की स्थिति, उसका धरती पर पछाड़ ना बा कर गिरना, और उसकी समाजनक स्थिति को कवि ने अनुरपनात्मक तथा ध्वन्यात्मक शब्दों में वर्णित किया है: सय एस ए ए कडि परिवाति रिमिकिमि रिमिती निकिति र पय नगर उभळी माहि माल बलगल विमिसि शडियाली रायमए पिउ बोबा मम रवि भरिण धसका पडा वि रावत विवाल रोमा रिन्या बेखमा मम्मा निक जीव माया कि परमागइ पालइ विमा इस्यो म मरिह बाद
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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