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सरल तरल य वल्लरिय सिहण पीण घणतुंग उदर देखि लंका डलीय सोहइ तिबल इरंयु अह कोमल विमल नियंब किरि गंगा पुलिया करि कर ऊरि हरिण जंघ पल्लव कर चरमा मलपति चारुति वेल हीय हँसला हरावइ संका राग काहि बालु नह किरणि करावइ सह जिहि लहडीय रायमर लक्षण मुक्मला
घणउ घमेरल गह गहए नव जुळवण बाला
afa वर का घोड़े पर प्रयाण, गवार्थों में बैठकर नारियों का बारात का लिखना वर ऊपर से लूम (नक्क) उतारना आदि प्राचीन सामाजिक प्रथाओं की ओर संकेत करता है। रूप के साकार म नेमिनाथ को तथा श्रृंगार की हुई दुलहिन राजमती दोनों के वर्णन दो स्पष्ट चित्र खींच देते हैं। नेमि के रूप वर्मन में भाषा की
सरलता तथा अलंकारिकता कृति को महत्वपूर्ण बना देती है। दोनों चित्र इस प्रकार है:
अह से तरल तरइ रइरहि बडइ कुमारी कन्निहिं कुंडल बीति मड गति नवसर हारो बंदणि महि बंद चवळ कापडि सिमगारो माईश मरवि कुछ अधिकारो घरहि तु विनवर चामनवमी उदारहिं नरबहिनी दरि बनी
चट्ट परि बहस बार केडि जान भूषाला
हम-गम-रह पायक चक्कीक माला
नववधू का भार करने में कार्य की पनी म रमी है। वर्णन काव्य प्रौढत्व का इक है
किम किन राजलदेवि भ
गोरी मह घोर मंगद