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पंजिका तथा १०८ लोकों में विविध दर्शन युक्त संस्कृत ग्रन्थ, षड्दर्शन आदि प्रन्थों का भी उल्लेख किया है। प्रस्तुत कृति का काल सं० १४०५ है। श्री के०का शास्त्री ने इस सं० ११९४ मे १४०५ के बीच में माना है।'
कवि राजशखर ने इस छोटे से काव्य को रोला छंदों में लिखा है बिली प्रसाद गुण सम्पन्न तथा मालकारिक है। कवि की उन्नेबार प्रेषणीय है। कवि बहुक थे। उनकी विद्वता अनेक देशीय थी। परम्परा के कारण कवि ने बसंड का वर्णन भी किया है। कवि नै नेमि को इतना परामशाली दिखाया है कि बंदर जिस प्रकार शक्षा से धूल जाता है कुन भी उनकी भुजा में वैसे ही लटक गए। रानियों ने मिलकर उनको विवाह के लिए बाध्य किया। वे, हरि, हलघर सब बर्मत खेलने लगे। नेमिनाथ से माउ भवों का नेह निभाने वाली प्रसन की मुता राजुल के नसशिन वर्षन में पर्याप्त कौवा दिखाया है। उपमाओं, रुफकों और उत्प्रेक्षाओं का एक विचित्र संभार है। कवि का प्रवाह, आगिक उपादानों के साथ प्रकृति के तत्वों का मेल, वर्षन की सरलता और श्रृंगारिक्ता उल्लेखनीय है:
जह सामल कोमल केश पाव किरि मोर कलाउ बह दस माह मयन योग भडनाउ बंकुटियालीबईड निगरि वन बनाय
कारी होवन सा र नगद पान कारी (ब) राशु के बमों की गुफा मिल अब बीवन मार वर्मन, मरस घरत युवा बसारिया, नईम पोषर, बिली बम, गंगा पलिन की पाधि कोमल विमा मिसब बिबादि व अपमानों की गुमा देखिए:
कारबासि सिमोलमोल फुटता मारा ममामि द्या मार बबाल II रागलोडर भाभी सह बाइको टडकडता
t-पाचीमा डा.बोगीका डेरा प्रस्तावना माम.. बापणी कमियो,श्रीका. शास्त्री